काके लागू पाय
बलिहारी उस गुरु की
जो गोबिंद दियो दिखाया’
‘मेरे गुरु और मेरे भगवान दोनों मेरे सामने खड़े हैं।
मैं सबसे पहले किसके सामने सिर झुकाऊं?
उस गुरु की जय है!
जिसने मेरी भगवान से इस मुलाकात को संभव कर दिखाया है।’
… यह संत कबीर के दोहों में से एक का सार है। उनके बारे में जानें, –
वह महान भक्त थे, खडी बोली के जानकार भी। आप इन पंक्तियों में गुरू की महिमा देख सकते हैं। निश्चित तौर पर गुरु भगवान का अनमोल उपहार है। एक सज्जन के अनुसार – ‘जब हम जिंदगी की घाटी से अंधानुकरण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं, अंधकार में भटक रहे हैं, हमें किसी की मदद की जरूरत है, जिसके पास आंखें हो, एक गुरु… भगवान रहस्यों के जरिए नहीं सीखा सकता, बल्कि वह प्रज्ज्वलित
आत्माओं के जरिए जरूर सीखा सकता है.. गुरु-शिष्य रिश्ते में ऐसा ही आलौकिक नियम चरितार्थ होता है।’
रामकृष्ण परमहंस के बारे में जानें, –
वह दार्शनिक, सज्जन एक कहानी सुनाते थे। एक लड़का था। उसे उसके गुरु ने बताया कि ‘भगवान हर जगह है। हर जीवित प्राणी में है।’ गोविंद ने गुरु के ज्ञान को शब्दश: स्वीकार कर लिया। उसने वादा किया कि वह हर जगह भगवान को देखेगा। एक बार वह गांव में भ्रमण कर रहा था। तभी हाथी पागल हो गया। उसके ऊपर बैठा महावत उसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। वह चिल्ला-चिल्लाकर उसकी राह में आने वाले लोगों को हटने के लिए कह रहा था।
लेकिन गोविंद अभी भी अपने गुरु की बात याद आ रही थी- ‘गुरु ने हमसे कहा है कि हर वस्तु भगवान है। हाथी भी भगवान है। मैं भी भगवान हूं। एक भगवान को दूसरे से क्यों डरना चाहिए?’ हाथी आया और उसने गोविंद को घायल कर दिया। बुरी तरह से घायल गोविंद को गुरु के आश्रम में लाया गया। गुरु ने पूछा- ‘गोविंद! तुमने मूर्खतापूर्ण तरीके से काम क्यों किया? जब सब लोग दौड़ रहे थे तब तुमने दौड़कर अपना बचाव क्यों नहीं किया?’
गोविंद ने जवाब दिया- ‘लेकिन गुरुजी! क्या आपने हमें नहीं सिखाया कि हर वस्तु में भगवान है? फिर भगवान से डरने की क्या जरूरत है?’ गुरु हंस दिए। उन्होंने जवाब दिया, ‘ओह गोविंद! इसमें कोई संदेह नहीं कि हाथी भगवान है। लेकिन महावत भी भगवान है। क्या महावत-भगवान ने तुम्हें रास्ते से हटने को नहीं कहा था? तब तुमने महावत भगवान की क्यों नहीं सुनी?’ युवा गोविंद को तब गुरु की बात के सही मायने समझ आए- अंदरुनी सच्चाई सभी में एक-सी है। लेकिन बाहरी तौर पर काफी अंतर है।
दलाई लामा के बारे में जानें, –
वह तिब्बती धर्मगुरू हैं, भारत की धर्मशाला में रहते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव पर एक इंटरव्यू में कहा था, ‘टेबल पर कई सारे पकवान रखे हैं। हर व्यक्ति वह पकवान चुनता है जो उसे अच्छा लगता है। इसी तरह सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। लेकिन विविधता के लिए कई प्रकारों में अस्तित्व में रहते हैं…’ महान गुरु हमसे उम्मीद करते हैं कि हम आत्मावलोकन करें और पता लगाए कि किस गुरु के शब्दों से हमें सबसे ज्यादा प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन एक बार निर्णय ले लिया तो हमें गुरु के प्रति समर्पण करना होगा, कोई भी हमें अपने रास्ते से विचलित नहीं कर सकता।
आनंद कुमार की खास रिपोर्ट
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